कृषि किरण https://journals.saaer.org.in/index.php/krishi-kiran <p><strong>Journal's DOI: <a title="Krishi Kiran DOI" href="http://doi.org/10.58628/KK">http://doi.org/10.58628/KK</a><br />ISSN: 2456-8732</strong></p> hi-IN saaerkk2016@gmail.com (डॉ. श्रवण एम. हलधर) webmaster@saaer.org (वेबमास्टर) Sat, 24 Dec 2022 00:00:00 +0530 OJS 3.3.0.11 http://blogs.law.harvard.edu/tech/rss 60 उन्‍नत सस्‍य तकनीक अपनाकर गन्‍ना को कीटों से बचाएं https://journals.saaer.org.in/index.php/krishi-kiran/article/view/508 <p>पृथ्वी का पर्यावरण एक होता है। यदि किसी भाग में पर्यावरण असंतुलित होता है तो उसका प्रभाव समस्त विश्व के जीव-जन्तुओं पर पड़ता है। इसलिए यह सोचना सही नहीं होगा कि किसी अन्य जगह पर्यावरण को होने वाली हानि से हम अप्रभावित रहेंगे। पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले कारकों में औद्योगिकीकरण के साथ-साथ फसल उत्पादन में प्रयुक्त होने वाले रसायन भी प्रमुख हैं। वर्षाऋतु में जलप्रवाह द्वारा ये हानिकारक रसायन स्वच्छ जल राशियों और नदियों में चले जाते हैं जो पौधों, जलीय जीवों, पशुओं और मानव के शरीर में पहुंचकर रोग उत्पन्न करते हैं। गन्ना को क्षति पहुंचाने वाले कीटों का प्रकार एवं क्षति की सीमा कृषि जलवायु प्रदेश एवं अपनाए गए सस्य क्रियाओं पर निर्भर करती है। देश में कीटों की लगभग 250 से अधिक प्रजातियां रोपाई से कटाई तक गन्ना को क्षति पहुंचाती है। इन कीटों का युक्तिसंगत प्रबंधन कर फसल नुकसान को आर्थिक क्षति स्तर से नीचे बनाए रखना फसल उत्पादन हेतु आवश्यक है। सस्य प्रबंधन विधि का युक्तिसंगत इस्तेमाल कर हम फसल को स्वस्थ रखते हुए प्रति ईकाई संसाधन लागत से पर्यावरण को क्षति पहुंचाए बिना टिकाऊ उपज प्राप्त कर सकते हैं। हाल के वर्षो में फसल चक्र की अनियमितता, गन्ना के बाद पुनः गन्ना एवं बहू खूँटी प्रणाली के कारण कीटों का जीवन-चक्र अबाध गति से पूर्ण हो रहा है। सस्य तकनीकों द्वारा गन्ना की रोपाई से कटाई तक कीटों के लिए प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रुप से प्रतिकूल परिस्थिति तैयार करने का प्रयास किया जाता है। जिससे कीट अपना जीवन चक्र पूर्ण करने में असफल रह जाते हैं तथा गन्ना कीटों से बचने में सफल। एक अनुमान के अनुसार देश में प्रतिवर्ष कुल गन्ना की फसल का लगभग 8 से 10 प्रतिशत कीटों द्वारा नष्ट होता है जो कि गन्ना उत्पादन हेतु अपनायी गई विभिन्न सस्य क्रियाओं यथा प्रभेद, रोप का समय, नेत्रजनीय उर्वरक का इस्तेमाल की मात्रा एवं समय, सिंचाई, जल निकास तथा खरपतवारों आदि पर बहुत हद तक निर्भर करता है। विभिन्न श्रोतों से प्राप्त जानकारी से ज्ञात है कि गन्ना उत्पादन हेतु अनुशंसित तकनीकों का कृषक प्रक्षेत्रों पर आधे से भी कम इस्तेमाल होता है जिससे तरह-तरह की समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। उत्पादन के विभिन्न चरणों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया जाय तो कीटों से होने वाली हानि को आर्थिक क्षति स्तर से नीचे लाया जा सकता है। </p> डा० नवनीत कुमार, डा० अनिल कुमार, डा० सिधनाथ सिंह, डा० ललिता राणा, डा० ए० के० सिंह Copyright (c) 2022 Krishi Kiran - कृषि किरण https://journals.saaer.org.in/index.php/krishi-kiran/article/view/508 Sat, 24 Dec 2022 00:00:00 +0530 पोषणउद्यान- कुपोषण के विरुद्ध एक सक्षम प्रस्ताव https://journals.saaer.org.in/index.php/krishi-kiran/article/view/526 <p>पोषण उद्यान, पोषक तत्वों से भरपूर रसायन मुक्त सब्जियों और फलों की वर्ष भर घर पर उपलब्धता को सुनिश्चित करने का एक प्रभावी प्रयास है। फलों और सब्जियों पर केंद्रित यह पोषण का सबसे अच्छा स्रोत है और पूरे वर्ष पारिवारिक आहार सम्बन्धित विविध आवश्यकताओं को पूरा करता है। यह कुपोषण को समाप्त करने का एक कारगर उपाय है। पोषण उद्यान में भोजन और आय के स्रोत के लिए फलों और सब्जियों की खेती की जाती है। यह किचन गार्डन का एक अधिक उन्नत प्रकार है। पोषण उद्यान, विशेष रूप से महिलाओं के लिए फायदेमंद हैं तथा छोटे और सीमांत किसानों को विविध प्रकार के पोषक आहार प्रदान करने के साथ ही अन्य कई लाभ प्रदान करने में मदद कर सकता हैं जैसेकि पोषण उद्यान में लगे फलों और सब्जियों को अतिरिक्त आय के लिए विक्रय कर सकते है। पोषण उद्यान की अवधारणा को विकसित करने का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं को अपने घर पर उपलब्ध खाली जमीन में खाद्य फसलें लगाने के लिए प्रेरित करना हैं। पोषण उद्यान वाला प्रत्येक ग्रामीण परिवार, पोषण संबंधी पारिवारिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बाजार पर निर्भर नहीं रहता है और अधिक मात्रा में उत्पादन होने की अवस्था में उत्पादन को बिक्री के लिए भी रखा जा सकता है। जगह की कमी की स्थिति में शहर में टैरेस गार्डनिंग, वर्टिकल गार्डनिंग और कंटेनर गार्डनिंग के प्रकार के रूप में पोषण उद्यान की स्थापना की जा सकती है।</p> कंचन शिला, सुरेश चदं कांटवा, गुलाब चौधरी, अक्षय घिंटाला, विक्रमजीत सिंह, अशोक चौधरी, सुनील कुमार यादव Copyright (c) 2022 Krishi Kiran - कृषि किरण https://journals.saaer.org.in/index.php/krishi-kiran/article/view/526 Sat, 24 Dec 2022 00:00:00 +0530 ड्रोन प्रौद्योगिकी - भारतीय कृषि में इसका अनुप्रयोग https://journals.saaer.org.in/index.php/krishi-kiran/article/view/528 <p>ड्रोन, जिसे मानव रहित हवाई वाहन (यूएवी) के रूप में भी जाना जाता है, इसमें देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करके भारतीय कृषि में क्रांति लाने की क्षमता है। ड्रोन नियम 2021 ने देश में नागरिकों और व्यवसायों के लिए ड्रोन का स्वामित्व और संचालन करना आसान बना दिया है तथा अनुमति प्राप्त करने के शुल्क को भी नाममात्र के स्तर तक घटा दिया गया है। ड्रोन में कई विशेषताएं हैं, जैसे कि मल्टी-स्पेक्ट्रल और फोटो कैमरा इत्यादि। यह कृषि के कई पहलुओं में भी उपयोग किया जा सकता है, जिसमें फसल तनाव की निगरानी, पौधों की वृद्धि, पैदावार की भविष्यवाणी करना और कीटनाशकों, उर्वरक और पानी का वितरण करना शामिल है। ड्रोन का उपयोग किसी भी वनस्पति या फसल के स्वास्थ्य का विश्लेषण साथ ही साथ खरपतवार, रोगों और कीटों से प्रभाविते क्षेत्रों और इन उपद्रवों से निपटने के लिए आवश्यक रसायनों की सटीक मात्रा का आकलन करने के लिए उपयोग किया जा सकता है।<br><br></p> शिवानी रंजन, सुमित सौ, डी. के. रॉय, विश्वजीत प्रामाणिक, नवनीत कुमार Copyright (c) 2022 Krishi Kiran - कृषि किरण https://journals.saaer.org.in/index.php/krishi-kiran/article/view/528 Sat, 24 Dec 2022 00:00:00 +0530 ग्रामीण क्षेत्रों मे कृषि उधमिका: आज के समय की जरुरत https://journals.saaer.org.in/index.php/krishi-kiran/article/view/531 <p>खेती में बढ़ती लागत व घटते लाभ के कारण युवाओ का खेती के प्रति आकर्षण कम होता जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रो के युवा शहरो की तरफ पलायन कर रहे है। ऐसी स्थिति में कृषि उधमिता को अपनाकर नये रोजगार के अवसर सृजित कर सकते है। साथ-साथ ही शहरी पलायन को भी रोका जा सकता है। आज के समय में शुद्ध आर्गेनिक खाने की मांग बढ़ रही है सभी लोग अब स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो गये है। इसलिए ग्रामीण युवा कृषि उधमिका के माध्यम से अनेक प्रकार के रोजगार सृजन कर जैसे कृषि पर्यटन, मुर्गीपालन, पशुपालन, मत्स्य पालन, मशरूम की खेती आदि द्वारा शहरी क्षेत्रो में शुद्ध सब्जी, फल, अनाज, अंडा आदि पहुँचाकर अधिक से अधिक आमदनी अर्जित कर सकते है। कृषि उधमिका आज के समय की जरूरत है ताकि ग्रामीण युवा आय के साधन जुटा सके।</p> बाबू लाल धायल, ओम प्रकाश जीतरवाल, केशर मल चौधरी, परवीन Copyright (c) 2022 Krishi Kiran - कृषि किरण https://journals.saaer.org.in/index.php/krishi-kiran/article/view/531 Sat, 24 Dec 2022 00:00:00 +0530 गेंदा फूल की वैज्ञानिक खेती-किसान की आय का स्रोत https://journals.saaer.org.in/index.php/krishi-kiran/article/view/543 <p>गेंदा (<em>टैगेट्स स्पी</em>. ) एस्टेरेसी परिवार के जीनस <em>टैगेट्स</em> से संबंधित है। मैक्सिको तथा दक्षिण अमेरिका मूल का गेंदा भारत के मैदानी इलाकों में पूरे साल सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। गेंदे का भारत में फूलों के व्यवसाय में एक महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि इसका व्यापक रूप से धार्मिक और सामाजिक अवसरों पर उपयोग किया जाता है। वैज्ञानिक तकनीक से खेती करने पर गेंदा, धान और दलहनी फसलों की तुलना में कई गुना अधिक फायदेमंद होता है। एक हेक्टेयर गेंदे की फसल से 55-75 हजार रुपये तक का लाभ उठाया जा सकता है, जबकि धान से लगभग 32,000-35,000 रुपये और अरहर से 13,000-15,000 रुपये मिलते हैं। आमदनी अधिक होने के कारण देशभर में गेंदे की खेती पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है। ताकि भारत के छोटे किसान भी इसकी खेती कर ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाकर अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार ला सकें। साल भर उपलब्धता के कारण इसकी मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।</p> धन सिंह, नवदीप कुमार, मनीष कुमार सोनकर Copyright (c) 2022 Krishi Kiran - कृषि किरण https://journals.saaer.org.in/index.php/krishi-kiran/article/view/543 Sat, 24 Dec 2022 00:00:00 +0530 कृषि और उससे जुड़े क्षेत्रों में महिलाओं का योगदान https://journals.saaer.org.in/index.php/krishi-kiran/article/view/431 <p>हालांकि दुनिया की लगभग आधी कृषि श्रम शक्ति महिलाओं की है, पर महिलाओं के पास 20 प्रतिशत से कम कृषि भूमि है। वहीं, अध्ययन में आया है कि दुनिया में लंबे समय से भूखे लोगों में से 60 प्रतिशत महिलाएं या लड़कियां हैं। इसलिए महिलाओं का सशक्तिकरण करना बेहद आवश्यक है क्योंकि जब महिलाएं पूरी तरह से कृषि में शामिल होती है तो लाभ तुरंत देखा जा सकता है जैसे कि: स्वस्थ परिवार; अधिक आय, बचत और अधिक निवेश । महिला किसानों की क्षमता का एहसास करने के लिए कृषि में लिंग विशिष्ट और लिंग संवेदनशील दृष्टिकोण, संरचनात्मक असमानताओं को संबोधित करना आवश्यक है। सक्षम और कुशल महिला कार्यबल से किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। समान पहुंच और अवसर सुनिश्चित करके कृषि में महिला कार्यबल का सशक्तिकरण भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मूलभूत परिवर्तन लाएगा, जिससे लाखों लोगों के जीवन में सुधार होगा।</p> मधु पटियाल, अंजना ठाकुर, संतोष कुमार बिश्नोई Copyright (c) 2022 Krishi Kiran - कृषि किरण https://journals.saaer.org.in/index.php/krishi-kiran/article/view/431 Sat, 24 Dec 2022 00:00:00 +0530 गेहूँ के मुख्य रोग एवं प्रबंधन https://journals.saaer.org.in/index.php/krishi-kiran/article/view/563 <p>गेहूँ प्रमुख खाद्य फसलों में से एक है। गेहूँ में रोग, उपज हानि का एक प्रमुख कारण हैं। अतः गेहूँ की अधिक उपज प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि हम यह जान लें की गेहूँ की फसल में होने वाले रोग कौन-कौन से हैं, उनके लक्षण क्या हैं और उनसे कैसे बचा जा सकता है। गेहूँ के अधिकांश रोग कवक के कारण होते हैं, जो कभी-कभी फसल को अत्यधिक नुकसान पहुँचाते हैं। गेहूँ की फसल में अनेक रोग लगते हैं जिनमें रतुआः धारीदार/पीला, पर्ण/ भूरा एवं तना/ काला रतुआ; खुली कांगियारी; चूर्णी रोग (पाउड़री मिल्डयू) आर्थिक रूप से अधिक नुकसानदायक हैं। <br>गेहूँ रोगों की व्यापकता पर पर्यावरणीय परिस्थितियों में भिन्नता का बड़ा प्रभाव है। सामान्य तौर पर, रोगज़नक़ इनोकुलम, जैविक कारक, साथ ही साथ नमी, तापमान और हवा; पर्यावरणीय कारक, रोगों के महामारी प्रसार को प्रभावित करने वाले सबसे महत्वपूर्ण निर्धारक हैं।</p> मधु पटियाल, एस के बिश्नोई, के के प्रामाणिक, धर्म पाल, ए के शुक्ला, अंजना ठाकुर Copyright (c) 2022 Krishi Kiran - कृषि किरण https://journals.saaer.org.in/index.php/krishi-kiran/article/view/563 Sat, 24 Dec 2022 00:00:00 +0530 जौ का महत्व एवं उत्तर पर्वतीय क्षेत्रों के लिए जौ की प्रजातियाँ https://journals.saaer.org.in/index.php/krishi-kiran/article/view/564 <p>जौ विश्व के सबसे पुराने अनाजों में से एक है जिसकी खेती- खाद्यान, हरे चारे व माल्ट की फसल के रूप में की जा रही है। यह अनाज फसलों में चोथे स्थान पर आती है और विश्व के अनाज उत्पादन में 7 प्रतिशत का सहयोग देती है। भारत में उत्तरी मैदानी और उत्तरी पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी खेती सर्दियों (रबी) के मौसम के दौराना एक महत्वपूर्ण खाद्य फसल के रूप में की जाती है। पर्वतीय राज्यों के अत्यधिक ऊँचाई वाले इलाकों में जौ की खेती गर्मियों में भी की जाती है। जौ की खेती से किसान अपने भोजन, पेय प्रदार्थ और पशुओं के हरे चारे की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। देश के किसानों के लिए पशुपालन एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, पर सर्दियों के मौसम में चारे की उपलब्धता किसानों के लिए एक बड़ी समस्या है और साथ ही जलवायु परिवर्तन की वजह से सूखा एक भयंकर समस्या बनता जा रहा है। परिणामस्वरूप किसान ज़ई जैसी चारा फसलों (जिन्हें पानी की आवश्यकता होती है) को छोड़कर अन्य फसल विशेषकर जौ की तरफ अग्रसर हो रहे हैं।</p> मधु पटियाल, संतोष कुमार बिश्नोई, अंजना ठाकुर Copyright (c) 2022 Krishi Kiran - कृषि किरण https://journals.saaer.org.in/index.php/krishi-kiran/article/view/564 Sat, 24 Dec 2022 00:00:00 +0530 एग्रीकल्चर को कमर्शियल एग्रीकल्चर बनाए किसान https://journals.saaer.org.in/index.php/krishi-kiran/article/view/541 <p align="JUSTIFY">एग्रीकल्चर भारतीय अर्थव्यवस्था का एक मुख्य स्तम्भ है जिसने देश के 60 प्रतिशत लोगो को रोजगार दिया है व देश के सकल घरेलू उत्पाद में इसकी 17 प्रतिशत भागीदारी है। भारत में कृषि का प्रारम्भ उत्तरपश्चिमीय प्रान्त में 9000 ईसा पूर्व वर्षारोपण, घरेलू स्तर पर फसलों को उगाने व जानवरों के रख रखाव से शुरू हुआ था। धीरे-धीरे आवशयकतानुसार इसमें कई बदलाव आते गए जैसे की सिंचाई के स्त्रोतों को तलाशा गया क्योंकि कृषि मौसम पर आधारित होती है और फसल को सूखे से बचाने के लिए सिंचाई की आवशयकता होती है अतः धीरे-धीरे आवशयकतानुसार कृषि से जुड़ी विभिन्न जरुरतों पर भी ध्यान केन्द्रित किया गया। पुरातन समय मे लोग मुख्यतः अपने जीवनयापन के लिए ही खेतीबाड़ी किया करते थे। उस समय कोई वस्तु खरीदने के लिए वस्तु विनिमय प्रणाली (बारटर सिस्टम) का प्रचलन था। यह वह प्रणाली होती थी जब किसी एक वस्तु के बदले दूसरी वस्तु को लिया या दिया जाता था। इस समय रुपये-पैसे का इस्तेमाल नही किया जाता था। अतः इसलिए मनुष्य ने कभी कमर्शियल एग्रीकल्चर अपनाने को नही सोचा परन्तु आज के समय में जीवनयापन हेतु रुपये-पैसे की आवश्यकता होती है। अतः हमारे किसानों को एग्रीकल्चर को कमर्शियल एग्रीकल्चर के रुप में अपनाने की जरुरत है।</p> बिंदिया दत्त Copyright (c) 2022 Krishi Kiran - कृषि किरण https://journals.saaer.org.in/index.php/krishi-kiran/article/view/541 Sat, 24 Dec 2022 00:00:00 +0530