जौ का महत्व एवं उत्तर पर्वतीय क्षेत्रों के लिए जौ की प्रजातियाँ

लेखक

  • मधु पटियाल भा.कृ.अनु.प-भा.कृ.अ.सं, क्षेत्रीय केंद्र शिमला
  • संतोष कुमार बिश्नोई भा.कृ.अनु.प-आई आई डव्लू बी आर, करनाल
  • अंजना ठाकुर सी एस के एच पी के वी, पालमपुर

सार

जौ विश्व के सबसे पुराने अनाजों में से एक है जिसकी खेती- खाद्यान, हरे चारे व माल्ट की फसल के रूप में की जा रही है। यह अनाज फसलों में चोथे स्थान पर आती है और विश्व के अनाज उत्पादन में 7 प्रतिशत का सहयोग देती है। भारत में उत्तरी मैदानी और उत्तरी पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी खेती सर्दियों (रबी) के मौसम के दौराना एक महत्वपूर्ण खाद्य फसल के रूप में की जाती है। पर्वतीय राज्यों के अत्यधिक ऊँचाई वाले इलाकों में जौ की खेती गर्मियों में भी की जाती है। जौ की खेती से किसान अपने भोजन, पेय प्रदार्थ और पशुओं के हरे चारे की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। देश के किसानों के लिए पशुपालन एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, पर सर्दियों के मौसम में चारे की उपलब्धता किसानों के लिए एक बड़ी समस्या है और साथ ही जलवायु परिवर्तन की वजह से सूखा एक भयंकर समस्या बनता जा रहा है। परिणामस्वरूप किसान ज़ई जैसी चारा फसलों (जिन्हें पानी की आवश्यकता होती है) को छोड़कर अन्य फसल विशेषकर जौ की तरफ अग्रसर हो रहे हैं।

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प्रकाशित

2022-12-24

How to Cite

पटियाल म., बिश्नोई स. क., & ठाकुर अ. (2022). जौ का महत्व एवं उत्तर पर्वतीय क्षेत्रों के लिए जौ की प्रजातियाँ. कृषि किरण, 14(14), 37–41. Retrieved from https://journals.saaer.org.in/index.php/krishi-kiran/article/view/564

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