उन्नत सस्य तकनीक अपनाकर गन्ना को कीटों से बचाएं
सार
पृथ्वी का पर्यावरण एक होता है। यदि किसी भाग में पर्यावरण असंतुलित होता है तो उसका प्रभाव समस्त विश्व के जीव-जन्तुओं पर पड़ता है। इसलिए यह सोचना सही नहीं होगा कि किसी अन्य जगह पर्यावरण को होने वाली हानि से हम अप्रभावित रहेंगे। पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले कारकों में औद्योगिकीकरण के साथ-साथ फसल उत्पादन में प्रयुक्त होने वाले रसायन भी प्रमुख हैं। वर्षाऋतु में जलप्रवाह द्वारा ये हानिकारक रसायन स्वच्छ जल राशियों और नदियों में चले जाते हैं जो पौधों, जलीय जीवों, पशुओं और मानव के शरीर में पहुंचकर रोग उत्पन्न करते हैं। गन्ना को क्षति पहुंचाने वाले कीटों का प्रकार एवं क्षति की सीमा कृषि जलवायु प्रदेश एवं अपनाए गए सस्य क्रियाओं पर निर्भर करती है। देश में कीटों की लगभग 250 से अधिक प्रजातियां रोपाई से कटाई तक गन्ना को क्षति पहुंचाती है। इन कीटों का युक्तिसंगत प्रबंधन कर फसल नुकसान को आर्थिक क्षति स्तर से नीचे बनाए रखना फसल उत्पादन हेतु आवश्यक है। सस्य प्रबंधन विधि का युक्तिसंगत इस्तेमाल कर हम फसल को स्वस्थ रखते हुए प्रति ईकाई संसाधन लागत से पर्यावरण को क्षति पहुंचाए बिना टिकाऊ उपज प्राप्त कर सकते हैं। हाल के वर्षो में फसल चक्र की अनियमितता, गन्ना के बाद पुनः गन्ना एवं बहू खूँटी प्रणाली के कारण कीटों का जीवन-चक्र अबाध गति से पूर्ण हो रहा है। सस्य तकनीकों द्वारा गन्ना की रोपाई से कटाई तक कीटों के लिए प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रुप से प्रतिकूल परिस्थिति तैयार करने का प्रयास किया जाता है। जिससे कीट अपना जीवन चक्र पूर्ण करने में असफल रह जाते हैं तथा गन्ना कीटों से बचने में सफल। एक अनुमान के अनुसार देश में प्रतिवर्ष कुल गन्ना की फसल का लगभग 8 से 10 प्रतिशत कीटों द्वारा नष्ट होता है जो कि गन्ना उत्पादन हेतु अपनायी गई विभिन्न सस्य क्रियाओं यथा प्रभेद, रोप का समय, नेत्रजनीय उर्वरक का इस्तेमाल की मात्रा एवं समय, सिंचाई, जल निकास तथा खरपतवारों आदि पर बहुत हद तक निर्भर करता है। विभिन्न श्रोतों से प्राप्त जानकारी से ज्ञात है कि गन्ना उत्पादन हेतु अनुशंसित तकनीकों का कृषक प्रक्षेत्रों पर आधे से भी कम इस्तेमाल होता है जिससे तरह-तरह की समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। उत्पादन के विभिन्न चरणों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया जाय तो कीटों से होने वाली हानि को आर्थिक क्षति स्तर से नीचे लाया जा सकता है।